कुर्बानी के मौके पर सफाई, नालियों में खून बहाने और सोशल मीडिया पर कुर्बानी की तस्वीरें अपलोड करने जैसे मसलों पर गाइडलाइन भी जारी की गई
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कानपुर। मोहम्मद उस्मान कुरैशी। कुल हिंद इस्लामिक इल्मी एकेडमी, कानपुर के मुफ्तियों और उलमा की एक टीम बनाकर लोगों को हज और कुर्बानी के मसलों में रहनुमाई देने के लिए, पिछले सालों की तरह इस साल भी अल-शरईया हेल्पलाइन बराए हज व कुर्बानी की शुरुआत की है।
एकेडमी के दफ्तर, जमीअत बिल्डिंग, रजबी रोड, कानपुर से एकेडमी के जिम्मेदारों ने मुसलमानों से अपील की कि हज और कुर्बानी जैसी अहम इबादतों और दीनी मसलों की सही जानकारी के लिए उलमा से रहनुमाई जरूर लें।
इन बातों का इजहार साबिक काजी-ए-शहर मौलाना मोहम्मद मतीनुल हक उसामा कासमी साहब के क़ायम किए हुए उलमा और मुफ्तियों के पैनल, ऑल इंडिया इस्लामिक इल्मी एकेडमी कानपुर के सदर मुफ्ती इक़बाल अहमद कासमी, नायब सदर मुफ्ती अब्दुर रशीद कासमी, जनरल सेक्रेटरी मौलाना खलील अहमद मजाहिरी और जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के नायब सदर मौलाना अमीनुल हक अब्दुल्लाह कासमी ने जमीअत बिल्डिंग, रजबी रोड में मुनक्किद प्रेस कांफ्रेंस में मिलकर किया।
एकेडमी के सदर मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी ने कहा कि जिल-हिज्जा के महीने में कुर्बानी से जुड़े बहुत से मसले होते हैं जो आम लोगों को मालूम नहीं होते। हज के मौके पर भी बहुत से सवालात सामने आते हैं और कभी-कभी लोग मसला जानने के लिए परेशान होते हैं। इन्हीं जरूरतों के मद्देनजर इस्लामिक इल्मी एकेडमी ने अल-शरईया हेल्पलाइन चलाने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि मदीना मुनव्वरा की हाजिरी, मस्जिद-ए-नबवी में नमाज, सलाम के आदाब और हज के दौरान एहराम की तैयारी से लेकर मिना, अराफात, मुजदलिफा के अरकान, जमरात पर कंकरी मारना, हजामत, तवाफ-ए-जियारत जैसे बहुत से मोड़ होते हैं जब लोग परेशान होते हैं और कोई सही रहनुमा नहीं मिलता।
हज कब और कैसे मक़बूल व मबरूर बनता है, हज के अरकान में कौन सा जरूरी है और कौन सा छूट जाए तो दम देना पड़ता है यह सब सही तरीके से मालूम न होने की वजह से समस्याएं हो जाती हैं।
नायब सदर मुफ्ती अब्दुर रशीद कासमी ने कहा कि इसी तरह कुर्बानी से जुड़े भी बहुत से मसले होते हैं जो लोग पूछना चाहते हैं। जानवरों से संबंधित शरीअत में बड़ी तफसीलात हैं। कब कुर्बानी वाजिब होती है? कब से कब तक की जा सकती है? अगर कोई कुर्बानी न कर सके तो क्या हुक्म है? वगैरह-वगैरह।
इसलिए जो लोग हज पर जा रहे हैं या जिनके रिश्तेदार जा रहे हैं, वो उन्हें हेल्पलाइन के नंबर भेज दें और कुर्बानी से जुड़े मसलों के लिए एकेडमी के सदस्यों से तुरंत संपर्क करें ताकि वक्त पर रहनुमाई मिल सके।
जनरल सेक्रेटरी मौलाना खलील अहमद मजाहिरी ने कहा कि कुर्बानी एक अजीम इबादत है और यह हजरत इब्राहीम व इस्माईल (अलैहिमस्सलाम) की यादगार है। कुर्बानी हमें यह सिखाती है कि अल्लाह और उसके रसूल की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज भी कुर्बान कर दी जाए।
कुर्बानी के दिनों में यही सबसे बड़ी इबादत है कोई और अमल, जैसे सदक़ा या खैरात, कुर्बानी का बदला नहीं हो सकता। इसलिए पूरे ईमानी जज्बे के साथ कुर्बानी के फलसफे को सामने रखते हुए बेहतर से बेहतर जानवर की कुर्बानी का माहौल बनाएं।
एकेडमी के रुक्न और जमीअत उलमा यूपी के नायब सदर मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्ला कासमी ने अपील की कि कुर्बानी के दौरान साफ-सफाई का खास ख्याल रखें। खुली नालियों में खून बहाने से बचें। कुर्बानी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर न डालें और गोश्त ले जाते वक्त काली पन्नी या बंद थैलियों का इस्तेमाल करें।
साथ ही उन्होंने कहा कि कानपुर और उसके आसपास अगर कहीं कोई कुर्बानी जैसी इबादत में बेवजह रुकावट डाल रहा हो तो नीचे दिए गए नंबरों पर खबर दें।
इस मौके पर मौलाना मोहम्मद अनीस खान कासमी, मौलाना मोहम्मद इनामुल्लाह क़ासमी, मुफ्ती सैयद मोहम्मद उस्मान कासमी, मुफ्ती सअद नूर क़ासमी और मुफ्ती इजहार मुकर्रम कासमी समेत एकेडमी के दूसरे सदस्य मौजूद थे।