बड़े-बुजुर्गों की चिंता कुंभ स्नान की है जिस के ट्रेनों और बसों में जगह पाने के लिए रेलवे और बस स्टेशनों पर लाइन लगा रहे हैं। खूब धक्का-मुक्की कर रहे हैं। हरहाल में सीट हथिया रहे हैं। अफसरों की घुड़की और पुलिस की डांट-फटकार खा रहे हैं। सब कुछ बर्दाश्त कर महाकुंभ में संगम स्नान करने प्रयागराज जा रहे हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इनमें बड़े-बूढ़े और युवाओं के साथ महिलाएं शामिल हैं। बेतियाहाता में भी रोज ऐसा ही दृश्य बन रहा है। लम्बी लाइन लगा रहे हैं। भूखे-प्यासे दिन भर रह जा रहे हैं। कोई डांट रहा है तो कोई फटकार लगा रहा है। सब कुछ सह कर डटे हुए हैं। यहां लाइन में लगने वाले मासूम बच्चे हैं। इनकी श्रद्धा नहीं जरूरत है। ये आधार कार्ड चाहते हैं। आधार कार्ड बनवाने के लिए ठंडी में भी पसीना बहा रहे हैं।
महज 6 साल से 12 साल तक के बच्चों की ऐसी लाइन जैसी बेतियाहाता में सुबह से शाम तक लग रही है, शायद ही कभी पहले कहीं और लगती रही हो। यहां लाइन में खड़े बच्चों के चेहरों पर जितनी चिंता दिखती है इससे पहले शायद ही कभी कहीं दिखी हो। ये मासूम अपने चेहरों पर बड़े-बुजुर्गों जैसे चिंता के भाव लिए सुबह ही पैदल, ऑटो या बस-जीप से बेतियाहाता पहुंच जा रहे हैं।
कुछ खाने की टिफिन लेकर आ रहे हैं कुछ खाली हाथ आ रहे हैं। छोटे-बड़े हर बच्चे लाइन में लग जा रहे हैं। लाइन में लगने के बाद चाहे टिफिन लाए हैं या खाली आए हैं, सब भूखे-प्यासे रह जा रहे हैं। इन्हें चिंता सता रही है कि यदि खाना खाने के लिए जाएंगे और लाइन से हट जाएंगे तो फिर अपनी जगह पर जम नहीं पाएंगे। आधार कार्ड बनवाने के लिए खिड़की तक पहुंचने का उनका नम्बर कट जाएगा और वे काफी पीछे हो जाएंगे।
लाइन में लगे तमाम मासूमों को केवल एक बात पता है…आधार कार्ड बनवाने आए हैं। यदि उनसे कोई सवाल किया जाता है तो मासूमियत दिखाते हुए इधर-उधर झांकने लग जाते हैं। कहां आए हैं! यह पूछने पर तुरंत जवाब देते हैं…आधार कार्ड बनवाने। खाना खा लिए हैं! इस सवाल के जवाब में कोई हां में सिर हिला देता है तो कोई ना में। कई बच्चे तो दूसरे बच्चों के अभिभावकों के ही साथ आ जाते हैं। दूसरे बच्चों के अभिभावक उनके भी आधार कार्ड बनवाने में मदद कर देते हैं। परंतु लाइन में तो मासूम को ही खड़ा रहना पड़ रहा है।
अरविन्द कुमार राय वरिष्ट पत्रकार