कानपुर। मोहम्मद उस्मान कुरैशी। ज़हवए कुबरा के वक्त रोज़े की नीयत करना कैसा है?। रमजान हेल्प लाइन पर लगातार रमजान और रोज से संबंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं। 04 मार्च को पूछे गए प्रश्न इस प्रकार से है
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!ज़हवए कुबरा के वक्त रोज़े की नीयत करना कैसा है?
जवाब: ज़हवए कुबरा (यानी जब सूरज ख़त-ए-निस्फ़ुन्नहार शरई पर पहुंच जाए) नीयत का वक्त नहीं है। नीयत इससे पहले कर लेनी ज़रूरी है। अगर किसी ने ख़ास इसी वक्त नीयत की तो उसका रोज़ा नहीं होगा।
- अगर यूं नीयत की कि “कल अगर कहीं दावत हुई तो रोज़ा नहीं, वरना रोज़ा है”, तो क्या यह नीयत सही है?
जवाब: ऐसी नीयत करना दुरुस्त नहीं। अगर कोई इस तरह नीयत करे तो वह रोज़ेदार नहीं होगा।
- अगर सहरी में रोज़े की नीयत करना भूल गया और फज्र की नमाज़ में याद आया तो क्या उस वक्त नीयत कर सकता है?
जवाब: अगर फज्र की नमाज़ में रोज़े की नीयत कर ली तो रोज़ा हो जाएगा, क्योंकि सुबह सादिक़ के बाद भी नीयत का वक्त रहता है। नेज़, सहरी खाना भी नीयत के क़ायम मक़ाम है, चाहे वह रमज़ान के रोज़े के लिए हो या किसी और रोज़े के लिए।
अगर कई साल के रोज़े क़ज़ा हों तो उनकी अदायगी की नीयत कैसे करनी चाहिए?
जवाब: अगर कई रोज़े क़ज़ा हो चुके हों तो नीयत यूं होनी चाहिए कि “मैं सबसे पहले इस रमज़ान के पहले क़ज़ा रोज़े की नीयत करता हूं, फिर दूसरे की, और इसी तरतीब से बाकी रोज़ों की नीयत की जाए।” अगर कुछ रोज़े एक साल के और कुछ दूसरे साल के क़ज़ा हों तो नीयत में यह वाज़ेह होना चाहिए कि “इस साल के और पिछले साल के क़ज़ा रोज़े रख रहा हूं।” अगर दिन और साल का ताय्युन न भी करे तो भी क़ज़ा अदा हो जाएगी।
माहे स्याम हेल्प लाइन में मुफ्ती हज़रात व उलमा ए अहले सुन्नत के व्हाट्सअप व कॉन्टेक्ट नंबर्स
- मुफ्ती मोहम्मद इलियास खां नूरी (मुफ्ती आजम कानपुर) 9935366726
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- मुफ्ती मोहम्मद महताब आलम कादरी मिस्बाही 9044890301
- मौलाना फतेह मोहम्मद कादरी 9918332871
- मुफ्ती महमूद हस्सान अख्तर अलीमी 9161779931
- मौलाना कासिम अशरफी मिस्बाही (ऑफिस इंचार्ज) 8052277015
- मौलाना गुलाम हसन क़ादरी 7897581967
- मुफ्ती गुल मोहम्मद जामई अशरफी 8127135701
- मौलाना सुफियान अहमद मिस्बाही 9519904761
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- जनाब इकबाल अहमद नूरी 8795819161