Shafique Faizi। न्यूज़G24। मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगजेब आलमगीर (1618–1707) का शासनकाल भारतीय इतिहास में सबसे लंबा 1658 से 1707 तक रहा। जिसको इतिहासकारों एक अजेंडा के तहत विवादित बना दिया है। 49 वर्ष तक भारत पे शाशन करने वाले औरंगजेब शाहजहाँ और मुमताज़ महल के बेटे थे। अपनी कुशल रणनीति और बेदाग़ अनुशासन के बल पर औरंगज़ेब ने अपने तीन भाइयों (दारा शिकोह, शाह शुजा, मुराद बख्श) को हराकर सत्ता हासिल की और पिता शाहजहाँ को आगरा के किले में नज़रबंद कर दिया।औरंगजेब ने “ज़िल्ल-ए-इलाही” (ईश्वर की छाया) की बजाय “आलमगीर” (विश्व विजेता) की उपाधि चुनी, जो उनके साम्राज्यवादी विस्तार को दर्शाता है।
औरंगज़ेब अखंड भारत का निर्माणकर्ता:
औरंगजेब ने दक्कन से लेकर अफ़गानिस्तान तक मुगल साम्राज्य का विस्तार कर भारत को अखंड भारत बनाया, लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक औरंगजेब कट्टर सुन्नी नीतियों, हिंदुओं और एवं अन्य धर्मों के प्रति सख़्त रवैये, तथा अंतहीन युद्धों ने औरंगज़ेब के साम्राज्य को आर्थिक रूप से कमज़ोर किया था। औरंगज़ेब से सम्बंधित विवादों और सच्चाई दोनों को हम इस लेख में समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले औरंगज़ेब पर लगे आरोपों की बात करते हैं।
औरंगज़ेब का विवादास्पद पहलू:
- धार्मिक नीतियाँ और मंदिर विध्वंस:
इतिहासकारों ने औरंगजेब की दो तरह की छवि पेश की है कुछ ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने, जज़िया कर (गैर-मुस्लिमों पर कर) लागू करने, और इस्लामिक कानून (शरिया) को बढ़ावा देने के आरोप लगाये हैं। केशव राय मंदिर (मथुरा), विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी), और सोमनाथ मंदिर के विध्वंस को उसकी धार्मिक कट्टरता का प्रतीक बताया जाता है। - सिख गुरु तेग बहादुर की हत्या:
1675 में गुरु तेग बहादुर को इस्लाम न स्वीकार करने के कारण दिल्ली में फाँसी दी गई। सिख इतिहास में यह धार्मिक उत्पीड़न की घटना के तौर पर दर्ज है। - पारिवारिक क्रूरता:
ऐसा माना जाता है कि सत्ता के लिए भाइयों की हत्या और पिता शाहजहाँ को कैद करना औरंगज़ेब की निर्मम छवि को रेखांकित करता है। - राजपूत और मराठा संघर्ष:
मेवाड़ के राजा राज सिंह और शिवाजी के साथ औरंगज़ेब के संघर्षों ने साम्राज्य में असंतोष बढ़ाया। शिवाजी की मुगलों से टक्कर को भारत में हिंदू प्रतिरोध का प्रतीक माना जाता है।
ऐतिहासिक सच्चाई और संदर्भ:
विश्व नाथ मन्दिर बनारस का ध्वस्तीकरण
यह बात सत्य है कि औरंगजेब ने बनारस के विश्व नाथ मन्दिर के ध्वस्त का आदेश दिया था लेकिन वहीँ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि औरंगज़ेब ने गोल कुन्डा की जामा मस्जिद को भी शहीद करने का आदेश पारित किया था। जिन हालात के तहत मन्दिर और मस्जिद को ध्वस्त किया गया और उसकी जो वजूहात बयान की गयीं उनको जानने के बाद औरंगजेब हिन्दू विरोधी या मुस्लिम कट्टरता का समर्थक था यह बात गलत साबित हो जाती है।
मंदिर विध्वंस का राजनीतिक पहलू:
इतिहासकार रिचर्ड ईटन जैसे विद्वान मानते हैं कि औरंगजेब ने अधिकांश मंदिरों को विद्रोही राजाओं को दंडित करने या सैन्य रणनीति के तहत तोड़ा, न कि धार्मिक घृणा से। कई मंदिरों को औरंगज़ेब ने अनुदान भी दिया, जैसे काशी विश्वनाथ में पूजा की अनुमति।
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ़ टकनालोजी, बंबई के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के पूर्व प्रोफ़ैसर और पूर्व सीनियर मेडिकल अफ़सर राम पुनियानी विशम्भर नाथ पाण्डेय की किताब farmans of king aurangzeb के हवाले से कहते हैं कि औरंगज़ेब ने मात्र 12 मंदिरों को तोड़ा जबकि 100 मंदिरों को दान भी दिया है जिनके ऑर्डर आज भी मंदिर के पुजारियों के पास उपलब्ध हैं। जिन में आसाम का कामख्या मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, वृन्दावन के श्री कृष्णा मंदिर, चित्रकूट बालाजी मंदिर एवं दाऊ जी मंदिर मथुरा, मुख्य रूप से जाने जाते हैं| लिहाज़ा यह कहना कि मंदिरों को विध्वंस करने के धार्मिक कारण थे यह गलत होगा।

विध्वंस के असल कारण:
विश्वनाथ मंदिर विध्वंस की घटना इस प्रकार है कि बंगाल जाते हुए औरंगजेब, जब बनारस के पास से गुजरा तो उन हिन्दू राजाओं ने जो उसके दरबार में आते जाते रहे थे औरंगजेब से वहां एक दिन ठहरने की विनती की ताकि उनकी रानियां बनारस में गंगा स्नान और विश्व नाथ देवता की पूजा कर सकें।
औरंगजेब तुरन्त राजी हो गया। और इन सब की रक्षा के लिए बनारस तक के पांच मील के रास्ते पर सेना की टुकड़ियों को नियुक्त कर दिया। रानियां पालकियों में सवार थीं। गंगा स्नान करके वे पूजा के लिए विश्व नाथ मन्दिर के लिए रवाना हुई। पूजा के बाद सिवाए कछ की महारानी के सारी रानियां वापस आ गयीं। महारानी की तलाश में मन्दिर की पूरी सीमाएं व इलाका छान डाला गया लेकिन उसका पता न चल सका।
औरंगजेब को इस घटना का पता लगा तो वह बड़ा नाराज हुआ और उसने अपने उच्च पदाधिकारियों को रानी की तलाश में भेजा। अन्त में वे गणेश मूर्ति के पास पहुंचे जो दीवार में लगी हुई थी और जो अपनी जगह से हिलायी जा सकती थी। उसे हरकत देने पर उन्हें सीढ़ियां नजर आयीं जो किसी तहखाने में जाती थी।
वहां उन्होंने एक बडा भयानक दृश्य देखा कि रानी की इज्ज़त लूटी जा चुकी थी और वे दहाड़े मार मार कर रो रही थी। यह तहखाना विश्व नाथ देवता की मूर्ति के ठीक नीचे था इस पर तमाम राजाओं ने क्रोधित होकर बड़ा विरोध किया चूंकि अपराध बड़ा घिनौना था इसलिए राजाओं ने अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की।
औरंगजेब ने आदेश दिया कि चूंकि वह पवित्र स्थान अपवित्र हो चुका है इसलिए विश्व नाथ देवता की मूर्ति को वहां से किसी अन्य स्थान पर पहुंचा दिया जाए और यह कि मन्दिर को ध्वस्त कर दिया जाए और महन्त को गिरफतार करके सजा दी जाए।”
पट्टामी सीता रमैया जो पटना म्यूजियम के पूर्व प्रबन्धक हैं उन्होंने इस का उल्लेख अपनी प्रसिद्ध पुस्तक (पर और पत्थर) में उल्लेख करते हुए इस घटना की पुष्टि की है।
जामा मस्जिद गोलकुन्डा का ध्वस्त होना:
गोल कुन्डा के प्रसिद्ध शासक तानाशाह ने यह हरकत की कि शाही कर वसूल तो किया परन्तु शहंशाह दिल्ली को इसकी अदाएगी नहीं की। कुछ ही सालों में यह राशि करोड़ों तक पहुंच गयी। तानाशाह ने यह खजाना जमीन के अन्दर दफन करके उस पर जामा मस्जिद का निर्माण करा दिया। जब औरंगजेब को इसका पता लगा तो इस मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश पारित किया और दफन किया हुआ खजाना जब्त करके जनता के कल्याण के कामों में खर्च कर दिया।
उपरोक्त दोनों घटनाओं से इस बात का पता लगता है कि औरंगजेब ने कभी भी मन्दिर व मस्जिद में कोई भेदभाव नहीं रखा।
इतिहास का दुर्भाग्य:
दुर्भाग्य से हिंदुस्तान के वर्तमान दौर में मध्यकाल के इतिहास की घटनाओं में ऐसी ऐसी गलत फहमियां व भ्रम पैदा कर दिए हैं और एतिहासिक पात्रों को इस प्रकार बिगाड दिया है कि इन गलत घटनाओं और चरित्र हनन को “खुदाई सच” माना जा रहा है और यदि कोई हकीकत व अफसाना सत्य व असत्य और सत्य की बिगड़ी हुई शक्ल को अलग करने की कोशिश करता है तो उसपर उंगलियां उठायी जाती हैं। पक्षपात करने वाले व्यक्ति और पार्टियां अपना लाभ हासिल करने के लिए इतिहास को तोड़ मरोड़ कर गलत बयानी के साथ पेश कर रही हैं। जो एक सभ्य भारतीय समाज के लिए दुखद है।
औरंगज़ेब का पारिवारिक क्रूरता:
यह एक निजी विषय था जिसका धार्मिक विरोधाभास से कोई लेना देना नहीं है। राज और सत्ता हथियाने के नाम पे ऐसी घटनाएँ आम हैं, भारतीय राजनीति में आज भी इस तरह की राजनितिक घटनाएँ होती रहती हैं।
जज़िया कर का उद्देश्य:
यह कर मुगल सेना के खर्चे के लिए लगाया गया था, लेकिन यह गैर-मुस्लिमों के लिए अपमानजनक माना गया। अकबर ने इसे खत्म किया था, लेकिन औरंगजेब ने इसे फिर से लागू किया।
इतिहास में दर्ज सचाई को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है जज़िया कर गैर मुस्लिम समुदाय से लिया जाने वाला एक मात्र कर था जबकि इसके विपरीत मुसलमानों को कई प्रकार के अन्य कर भी चुकाने पड़ते थे जो गैर मुस्लिमों के मुकाबले मुसलमानों पे ज्यादा था।
गुरु तेग बहादुर का मामला:
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों के धर्मांतरण का विरोध किया, जिससे औरंगजेब नाराज़ हुआ। यह घटना धार्मिक स्वतंत्रता और सत्ता के टकराव का उदाहरण है।
फ़ारसी और सिख दोनों इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि गुरु तेग बहादुर ने मुगल राज्य का सैन्य विरोध किया था इसलिए राज्य के दुश्मनों को दंडित करने के लिए औरंगज़ेब के उत्साह के अनुसार उन्हें फांसी की सज़ा दी गई। जिसका धार्मिक कोई उद्देश नहीं था।
औरंगज़ेब की प्रशासनिक योग्यता:
औरंगजेब ने “फतवा-ए-आलमगीरी” जैसे इस्लामिक कानूनों का संकलन करवाया और न्याय प्रणाली को मज़बूत किया। वह व्यक्तिगत रूप से सादा जीवन जीता था और कुरान की किताबत करके अपनी जेब खर्च चलाता था।
औरंगज़ेब का यही साफ शफ्फाफ़ और इंसाफ पसंद छवि बहुसंख्यकवाद को अच्छा नहीं लगता इस लिए बार बार औरंगज़ेब नाम भारत के राजनीति में उछलता रहता है।