भारत में अलग-अलग धर्म, संस्कृति और परंपराएं एक साथ रहती हैं। हर समुदाय के अपने अपने संस्कृति रिवाज और धार्मिक परम्पराएं और नियम कानून हैं, जैसे हिंदू मैरिज एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि। यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) का अर्थ है एक ऐसा कानून जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो, चाहे उनका धर्म अथवा जाति कुछ भी हो। अभी हाल ही में भारत के एक राज्य उतराखंड की सरकारी ने इसे लागू भी किया है, जिसका विभिन्न समुदाय द्वारा बहिष्कार एवं विरोध किया जा रहा है। मुस्लिमों के एक संगठन जमीअत उलमा ए हिन्द उत्तराखंड के इस कानून के खिलाफ न्यालय पहुँच गई है। बहुसंख्यक समाज से भी इस के खिलाफ लामबन्दी की तैयारियां चल रही हैं, इस दरमियान सब से बड़ा प्रश्न यह है कि क्या भारत जैसे विविधता भरे देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड संभव है?
यूसीसी क्यों चर्चा में है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) की संविधानिक बात की जाये तो भारतीय संविधान के “डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स” (अनुच्छेद 44) में यूसीसी की बात की गई है, किन्तु 75 सालों से अभी तक इस को लागू नहीं किया जा सका। यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) समर्थक लोगों का मानना है कि यूसीसी (UCC) से देश में “एक राष्ट्र, एक कानून” की भावना को बढ़ावा मिलेगा, जबकि विरोधी पक्ष को लगता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) समाज में तनाव पैदा करेगा।
Uniform Civil Code में क्या दिक्कतें आ सकती हैं?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के पक्ष में बात करने वालों के पास भी इसका कोई उचित हल नहीं है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के कारण उत्पन्न होने वाली सम्स्स्याओं का तोड़ कैसे निकलेगा। UCC की पक्षधर पार्टियाँ भी सही मायनों में यह समझ नहीं पा रही हैं कि इसको कैसे लागू किया सकता है, महज राजनितिक सिम्पति हासिल करने के लिए लिए ही इस मुद्दे को राजनीतक दल बार बार उठाते हैं । हकीकत में उससे पैदा होने वाली समस्स्याओं का उन्हें भी ज्ञान नहीं है।
1. धार्मिक आज़ादी पर सवाल
UCC के आने से सबसे बड़ा प्रश्न देश के सेकुलर ढांचे पर खड़ा हो रहा इस का मुख्य कारण है भारत के हर धर्म के अपने रीति-रिवाज़।
- मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक (हालांकि अब गैरकानूनी है) और चार शादियाँ।
- हिंदू, सिख, जैन समुदायों में अलग विरासत और विवाह के धार्मिक कानून।
यूसीसी लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आंच आएगी जो विशेष रूप से भारत के “धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ” है।
2. विविधता को नज़रअंदाज़ करना
भारत में सिर्फ धर्म के साथ साथ हर राज्य और छेत्र की अपनी अलग परंपराएं हैं। उदाहरण के लिए:
- नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों में जनजातीय कानून चलते हैं।
- नॉर्थ-ईस्ट और उत्तर भारत के हिन्दुओं की प्रथाएं और शादी के नियम कानून अलग हैं।
एक ही कानून सब पर थोपने से विभिन्न समुदाय को अपनी पहचान खोने का डर महसूस होता।
3. राजनीतिक विवाद
यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रति राजनीतिक पार्टियाँ एक मत नहीं हैं। कुछ पार्टियाँ इसे “हिंदू राष्ट्र” का एजेंडा, तो कुछ इसे समानता का साधन।वहीँ कुछ पार्टियाँ इससे समाज में ध्रुवीकरण डर दिखाती हैं।
4. कानूनी उलझनें
भारत में विभिन्न धार्मिक कानून हैं। जिनको यूसीसी लागू करने के लिए ख़तम करना होगा:
- सभी धार्मिक एवं पर्सनल लॉ कानूनों को खत्म करना होगा।
- नए कानून को हर समुदाय के लिए न्यायसंगत बनाना मुश्किल होगा।
उदाहरण: हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटी को बराबर हक मिलता है, लेकिन कई समुदायों में ऐसा नहीं है। उनमें से यूसीसी किस कानन को मान्यता देगा ?
5. सामाजिक एकता पर असर
यूसीसी जबरदस्ती लागू किया गया, तो अल्पसंख्यक समुदाय (जैसे मुस्लिम, ईसाई) खुद को असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। इससे समाज में गुस्सा और हिंसा फैलने का खतरा है। 1985 में शाह बानो केस के बाद सरकार को मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव वापस लेना पड़ा था, क्योंकि विरोध हुआ था।
Uniform Civil Code के फायदे क्या हो सकते हैं?
- महिलाओं के अधिकार: कई धर्मों में महिलाओं को विरासत या तलाक में कम अधिकार मिलते हैं। यूसीसी से उन्हें बराबरी मिल सकती है। ऐसा उन लोगों का मानना है जो महिलाओं के लिए पुरुषों के सामान्य अधिकारों की वकालत करते हैं।
- देश की एकता: सबके लिए एक कानून से राष्ट्रीय एकजुटता बढ़ेगी।
- आधुनिक समाज: पुरानी रूढ़िवादी प्रथाएं (जैसे बाल विवाह सतीप्रथा एवं हलाला ) खत्म हो सकती हैं।
लेकिन ये फायदे तभी मिलेंगे, जब यूसीसी सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए बनाया जाए। जहाँ तक सभी समुदाय के सम्भावनाओं के सम्मान का प्रश्न है तो इस छेत्र में अभी भारत बहुत पीछे है, फिल्हाल के राजनितिक दृष्टिकोण से बहुसंख्यकवाद को यूनिफॉर्म सिविल कोड का स्वरुप माना जा रहा है, जिसके लागू होने की संभावनाएं बहुत कम हैं। यदि इस तरह का कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत में लागू किया जाता है तो इस के दुष्परिणाम ज्याद हो सकते हैं।
क्या कोई राज्य यूसीसी लागू कर चुका है?
गोवा में पुर्तगाली कानून “गोवा सिविल कोड” 1867 से लागू है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है। लेकिन गोवा की आबादी और संस्कृति भारत के बाकी हिस्सों से अलग है। इसलिए, यहाँ का मॉडल पूरे देश में काम करेगा, यह ज़रूरी नहीं।
गोवा के बाद उत्तराखंड भारत का दूसरा राज्य है जिसने कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड को अभी हाल ही में लागू किया है। जिसके लिए उतराखंड सरकार की आलोचना भी की जा रही है। जमीअत उलमा ए हिन्द समेत कई विभिन्न संगठन इसका विरोध कर रहें हैं जमीअत उलमा ए हिन्द ने इसको गैरकानूनी बताते हुए इसके निरस्तीकरण के लिए न्यालय के एक याचका भी डाली है।
यूसीसी का विचार अच्छा है, लेकिन इस के लिए एक अलग से क़ानून लाने के बजाये पहले से मौजूद विभिन्न समुदाय के के धार्मिक कानूनों को और पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है। जिसमें हर समुदाय की भावनाओं का ध्यान रखा जाये। जल्दबाज़ी या जबरदस्ती से समस्याएँ बढ़ सकती हैं। सबसे पहले यह समझाना ज़रूरी है कि यूसीसी धार्मिक मान्यताओं खत्म करने का नहीं, बल्कि न्याय देने का तरीका होना चाहिए है। जिसका एक साधारण हल यह हो सकता है कि पहले से मौजूद काननों को ही समुदाय के धर्म स्वरुप न्याय के लिए बाध्य बनाया जाये इसके लिए सरकार को धार्मिक नेताओं, विद्वानों और आम जनता के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
अंत में: भारत जैसे देश में यूसीसी की राह आसान नहीं है। इसे सफल बनाने के लिए सहमति, संवेदनशीलता और समय की ज़रूरत है। वरना, यह एकता लाने के बजाय तनाव का कारण बन सकता है।