कानपुर।मोहम्मद उस्मान कुरैशी। 7 मार्च। सदक़ा ए फ़ित्र रोज़े में होने वाली ख़ता और ग़लतियों का मदावा है, गरीब की ग़रीबी को ख़त्म करने और मोहताज की मोहताजी को दूर करने का बेहतरीन ज़रिया है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!हदीस-ए-पाक का मफ़हूम है कि सदक़ा-ए-फ़ित्र इसीलिए वाजिब किया गया ताकि रोज़े लगव और बेहयाई की बातों से पाक हो जाएँ और ग़रीबों-मिस्कीनों के लिए खाने का इंतज़ाम हो। सदक़ा ए फ़ित्र का अदा करना हर मालिक-ए-निसाब पर वाजिब है। जब तक सदक़ा ए फ़ित्र अदा नहीं किया जाता, बंदे का रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान मुअल्लक़ रहता है। उसका रोज़ा तब तक क़बूल नहीं होता जब तक वह इसे अदा न कर दे।
लिहाज़ा, अगर गेहूँ के ज़रिए अदा किया जाए तो प्रति व्यक्ति 2 किलो 45 ग्राम अदा करना होगा। इस साल सदक़ा-ए-फ़ित्र की क़ीमत 70 रुपये मुक़र्रर की गई है। और अगर इसे खजूर, मुनक्का, जौ, या इनके आटे या सत्तू से अदा करना चाहे तो 4 किलो 90 ग्राम प्रति व्यक्ति अदा करना होगा।
यह बयान ईदगाह गदियाना के इमाम, मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफ़ी, जो कि ऑल इंडिया ग़रीब नवाज़ काउंसिल के क़ौमी सदर हैं, ने अक़्सा जामा मस्जिद गदियाना में नमाज़ ए जुमा से क़ब्ल दिए गए अपने खिताब में दिया।
उन्होंने आगे कहा कि गेहूँ के बदले उसका आटा देना अफ़ज़ल है, और उससे भी अफ़ज़ल यह है कि गेहूँ की क़ीमत दी जाए, या फिर जौ, खजूर, या मुनक्का की क़ीमत अदा की जाए।
यह भी वाज़ेह किया गया कि फित्रे की क़ीमत के एलान का तअय्युन कई उलेमा-ए-किराम की मीटिंग के बाद किया गया है।