कानपुर। मोहम्मद उस्मान कुरैशी। अखिल भारतीय मोमिन कांफ्रेंस की कानपुर इकाई के आह्वान पर शहर के गुलशन हॉल, चमनगंज में एक महत्वपूर्ण सलाहकारी बैठक आयोजित की गई। बैठक में संगठन की नीतियों से जुड़े प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बैठक की अध्यक्षता डॉ. हबीबुर रहमान ने की, जबकि संचालन अख्तर हुसैन अख्तर ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में मोमिन कांफ्रेंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष फिरोज अहमद अंसारी (एडवोकेट) उपस्थित रहे। राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मुजीब खालिद अंसारी भी बैठक में शामिल हुए। मुख्य अतिथि का स्वागत गुलशन हॉल परिसर में गुफरान चाँद के नेतृत्व में किया गया।
अख्तर हुसैन अख्तर ने बैठक का एजेंडा रखते हुए संगठन के ऐतिहासिक योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी की लड़ाई में मोमिन कांफ्रेंस ने ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ का खुलकर विरोध किया था और पाकिस्तान के निर्माण की निंदा की थी। इसी विरोध के कारण 1858 में स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद शेख भिखारी अंसारी और उनके सहयोगी राव उमराव सिंह को बंगाल में बरगद के पेड़ पर फांसी दी गई थी। उन्होंने कहा कि यह गौरवशाली इतिहास न सिर्फ शहादत को यादगार बनाए रखेगा, बल्कि युवाओं में देशभक्ति की भावना भी बढ़ाएगा।
जाति जनगणना पर ज़ोर:
अख्तर ने इस बैठक का मुख्य उद्देश्य बताते हुए कहा कि जल्द होने वाली जाति जनगणना में हर भारतीय मुसलमान से अपील की जाती है कि वह धर्म के कॉलम में ‘इस्लाम’ और जाति के कॉलम में अपनी विशिष्ट बिरादरी (जैसे अंसारी, कुरैशी आदि) का नाम ज़रूर दर्ज करवाए। अन्य वक्ताओं गुफरान चाँद, हाफिज महमूद बाबा, इश्तियाक निजामी, कुमैल अंसारी और ताहा अंसारी ने भी संगठन को मज़बूत करने और जाति जनगणना में पिछड़े मुसलमानों को अपनी जाति स्पष्ट रूप से दर्ज कराने के आह्वान का समर्थन किया।
“जनगणना एक आंदोलन बने”: मुख्य अतिथि
मुख्य अतिथि फिरोज अहमद अंसारी ने अपने संबोधन में संगठन को मजबूत बनाने पर जोर देते हुए कहा कि भारत सरकार के जाति जनगणना के फैसले में अगर मुसलमानों ने अपनी बिरादरी (जो उनके पारंपरिक पेशे पर आधारित है) को सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं करवाया, तो पिछड़े मुसलमानों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उन्नति के रास्ते, जो 75 साल बाद अब खुलते दिख रहे हैं, फिर से सदा के लिए बंद हो सकते हैं। इस आशंका को दूर करने के लिए सभी पिछड़े मुसलमानों को जाति जनगणना को एक आंदोलन का रूप देना होगा, जो हमारे युवाओं के भविष्य की गारंटी है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर इस आंदोलन में सफलता मिलती है, तो भविष्य में रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशें लागू होने पर मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग के दलित मुसलमानों को बहुमुखी लाभ मिल सकेंगे। बैठक का समापन डॉ. हबीबुर रहमान की दुआ के साथ हुआ।