इमाम हुसैन कल भी जिंदा थे, आज भी जिंदा हैं : मुफ्तिया गाजिया
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गोरखपुर। मुहर्रम में जिक्रे शुहदाए कर्बला की महफिल मस्जिद व घरों में जारी है। इमाम हुसैन व शुहदाए कर्बला को शिद्दत से याद किया जा रहा है। शनिवार मुहर्रम की दूसरी तारीख को मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमाम चौक तुर्कमानपुर में महिलाओं की ‘जिक्रे शुहदाए कर्बला’ महफिल हुई। महफिल या हुसैन की सदाओं से गूंजती रही। कुरआन-ए-पाक की तिलावत अदीबा खातून ने की। नात-ए-पाक सानिया खातून, शिफा नूर, सबा करीम, अलीशा, शालिबा ने पेश की। अध्यक्षता ज्या वारसी व आस्मां खातून ने की। संचालन सादिया नूर ने किया। हज़रत इमाम हुसैन की जिंदगी पर आधारित पर्चा भी बांटा गया।
मुख्य वक्ता मुफ्तिया गाजिया खानम अमजदी ने कहा कि कर्बला के 72 शहीदों ने जो बेमिसाल काम किया, उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती है। इमाम हुसैन कल भी जिंदा थे, आज भी जिंदा हैं। इमाम हुसैन सन् चार हिजरी को मदीना में पैदा हुए। आपकी मां का नाम हजरत सैयदा फातिमा जहरा व पिता का नाम हजरत सैयदना अली है। हजरत सैयदना इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम के सिद्धांत, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और अल्लाह के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते रहे।
विशिष्ट वक्ता महराजगंज की आलिमा शहाना खातून ने कहा कि इमाम हुसैन मक्का से सपरिवार कूफा के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में यजीद के षडयंत्र के कारण उन्हें कर्बला के मैदान में रोक लिया गया। तब इमाम हुसैन ने यह इच्छा प्रकट की कि मुझे सरहदी इलाके में चले जाने दो, ताकि शांति और अमन कायम रहे, लेकिन जालिम यजीद न माना। आखिर में सत्य के लिए लड़ते हुए हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए। आप बहुत बहादुर थे।
विशिष्ट वक्ता सना फातिमा ने कहा कि हजरत सैयदना इमाम हुसैन सन् 61 हिजरी मुहर्रम की दो तारीख को कर्बला पहुंचे। सातवीं मुहर्रम को कर्बला के मैदान में जालिम यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर पानी की आपूर्ति बंद कर दी ताकि वो शासक जालिम यजीद की मातहती स्वीकार कर लें मगर इमाम हुसैन और उनके साथियों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। नहरे फुरात पर यजीदी फौजियों को लगा दिया गया, ताकि हजरत इमाम हुसैन का काफिला पानी न पी सके। तीन दिन का भूखा प्यासा रखकर इमाम हुसैन व उनके साथियों को कर्बला की तपती जमीन पर शहीद कर दिया गया।
रहमतनगर में लगी पोस्टर प्रदर्शनी ‘हमारे हैं हुसैन’
वहीं सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर के पास पोस्टर प्रदर्शनी ‘हमारे हैं हुसैन’ लगाई गई। इमाम हुसैन की जिंदगी पर आधारित पर्चा बांटा गया। प्रदर्शनी के प्रति लोगों में जिज्ञासा दिखी। कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि हजरत इमाम हुसैन ने मुल्क या हुकूमत के लिए जंग नहीं की, बल्कि वह इंसानों के सोये हुए जेहन को जगाने आए थे। उनके कुनबे में शामिल बूढ़े, जवान, बच्चे और औरतों ने खुद पर जुल्म सहन कर लिया लेकिन पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन-ए-इस्लाम को जालिम यजीद से बचा लिया। आलमे इस्लाम को यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि हक और बातिल के बीच हुई जंग में कर्बला के शहीदों ने जो जीत हासिल की वह कयामत तक कायम रहेगी। अंत में मुल्क में अमन चैन की दुआ मांगी गई।
इमाम हुसैन की याद में गौसे आजम फाउंडेशन ने किया पौधारोपण
दूसरी मुहर्रम शनिवार को गौसे आजम फाउंडेशन से जुड़े युवाओं ने हजरत इमाम हुसैन को खिराज-ए-अकीदत पेश करते हुए कच्ची बाग कब्रिस्तान निजामपुर में पौधारोपण किया।
फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष समीर अली ने पौधारोपण कर पर्यावरण के प्रति जागरूक करते हुए कहा कि स्वस्थ पर्यावरण के लिए पेड़ पौधे बहुत आवश्यक हैं। हर इंसान को हर साल एक पेड़ जरूर लगाना चाहिए। पेड़ पौधा लगाकर हजरत उमर, इमाम हुसैन व शुहदाए कर्बला को खिराज-ए-अकीदत पेश करना हम सभी का दायित्व है। हम प्रण लें कि पर्यावरण को बेहतर बनाने में हर संभव प्रयास करेंगे। पौधारोपण में मो. फैज, मौलाना महमूद रज़ा कादरी, रियाज अहमद, नूर मुहम्मद दानिश, हाफिज अरीब खान आदि मौजूद रहे।