कंप्यूटर लैब और आधुनिक तकनीक से सुव्यवस्थित है मदरसा हमीदिया: मुफ्ती दाऊद
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गोरखपुर: गोरखपुर के मोहल्ला घासी कटरा स्थित (यतीम ख़ाना) आग़ोशे मदरसा हमीदिया में दिनांक 16 फरवरी को लगभग डेढ़ दर्जन बच्चों की दस्तारबंदी की गई। यह दस्तारबंदी उस समय की जाती है जब क़ुराने पाक की शिक्षा ग्रहण करने वाला छात्र उसे पूरी तरह हिफ़्ज़ (कंठस्थ) कर लेता है। जब वह पूरी तरह कुरान को कंठस्थ कर लेता है तब उसकी दस्तारबंदी (हाफ़िज़ की उपाधि) किसी बड़े आलिमे दीन के हाथों से कराई जाती है।
16 फ़रवरी 2025 दिन रविवार की रात मदरसा हामिदिया में आयोजित जलसे में, मदरसा अरबिया जौनपुर से आए मौलाना मुफ्ती अहमद शमीम के हाथों 15 हाफ़िज़ ए कुरान की दस्तरबंदी की गई। हाफ़िज़ की उपाधि पाने वालों में
- हाफ़िज़ मुहम्मद अशहद
- हाफ़िज़ मुहम्मद ज़ैद
- हाफ़िज़ मुहम्मद अब्दुल्लाह
- हाफ़िज़ अर्श
- हाफ़िज़ शरीक
- मुहम्मद हसन
- हाफ़िज़ मुहम्मद याहया
- हाफ़िज़ मुहम्मद सईद
- हाफ़िज़ तनवीर
- हाफ़िज़ मुहम्मद रवाहा
- हाफ़िज़ मुहम्मद अशहद
- हाफ़िज़ मुहम्मद नोमान
- हाफ़िज़ अज़ीज़
- हाफ़िज़ मुहम्मद मोहसिन
- हाफ़िज़ मुहम्मद हसन
- हाफ़िज़ अब्दुल्लाह
प्रबंध समिति की तरफ से सभी 15 हाफ़िज़ ए कुरान छात्रों को उपहार स्वरूप साइकिल दी गई। इस अवसर पर पत्रकार और साहित्यकार सैयद असिम रऊफ़ और सैयद अल्ताफ़ हुसैन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मुफ्ती मुहम्मद मुनीर ने किया।
इस अवसर पर मुतवल्ली महबूब सईद हारिस ने बताया कि आग़ोशे हमीदिया जिसका पुराना नाम यतीम खाना घासी कटरा अर्थात अनाथालय था। आज इस आग़ोशे हमीदिया में ज़िला गोरखपुर के अतिरिक्त प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले छात्र दीनी तालीम के साथ-साथ स्कूली शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं।

वर्तमान समय में लगभग 60 बच्चे आग़ोशे हमीदिया में रहते हैं। जिनका एडमिशन महानगर के एम एस आई इंटर कॉलेज बख़्शीपुर में कराया गया है। यह सभी बच्चे कक्षा 6 से 8 के विद्यार्थी हैं। साथ ही मदरसा हमीदिया में दीनी तालीम प्राप्त कर रहे हैं। महबूब सईद हारिस ने बताया कि इसके पीछे संस्थान का उद्देश्य है कि जो बच्चे मदरसे से दीनी तालीम प्राप्त कर रहे हैं।
उनके पास दीन की शिक्षा के साथ स्कूली शिक्षा की भी डिग्री हो, ताकि वह अपने आगे के जीवन में सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकें। यही कारण है कि बच्चों की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की गई है।मदरसा हमीदिया कंप्यूटर लैब एवं आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस है। मदरसा की देखभाल करने वाले उस्ताद(अध्यापक) काफ़ी कुशल हैं, और प्रबंध समिति ने जिस प्रकार इस मदरसे को सुंदर एवं आधुनिक बनाया है वह अपने आप में एक मिसाल है।
यतीम खाना से नाम बदलकर आग़ोशे हमीदिया क्यों पड़ा इस संबंध में मुफ्ती मुहम्मद दाऊद फ़ारूक़ी ने बताया कि इसका नाम यतीम खाना था अर्थात अनाथालय था, तो कोई यहां अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद नहीं करता था। यहां मदरसा भी था लेकिन कोई अभिभावक अपने बच्चों को यहां इसलिए नहीं भेजते थे कि लोग समझेंगे कि उनका बच्चा अनाथालय में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।
कुछ अनाथ बच्चे भी मदरसे में रहते थे। लेकिन जब से इस यतीमखाने का आधुनिकीकरण किया गया है इसका नाम यतीम खाना घासीकटरा से बदलकर आग़ोशे हमीदिया रखा गया है। तब से बड़ी संख्या में छात्र यहां शिक्षा ग्रहण करने आ रहे हैं। अब अभिभावकों के दिलों में जो असमंजस की स्थिति थी कि यतीम खाने में बच्चों को किस तरह शिक्षा के लिए भेजे वह असमंजस की स्थिति अब समाप्त हो चुकी है।
लगभग 60 बच्चे तो वह है जो आग़ोशे हमीदिया ( पुराना नाम यतीम खाना) में रहते हैं। जिनकी शिक्षा एवं खानपान का इंतजाम प्रबंध समिति के द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त आसपास के मोहल्ले के वह छात्र जो दिन में कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते हैं। शाम को आग़ोशे हमीदिया के मदरसे में अरबी और दैनिक शिक्षा भी ग्रहण करने के लिए आते हैं।