कानपुर के अलावा इटावा, उन्नाव, कन्नौज, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, मैनपुरी, हरदोई और फ़तेहपुर में भी मजलिस की तहरीक जारी, और विस्तार का मंसूबा तैयार
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
कानपुर। मोहम्मद उस्मान कुरैशी। मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत कानपुर के सभी अराकीन की सालाना मीटिंग नमाज़-ए-ईशा के बाद जमीअत बिल्डिंग रजब़ी रोड में हुई जिसमें मजलिस की सालाना कारगुज़ारी, मुस्तकबिल के अज़ाइम और ख़र्चात पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ किया गया तथा मौजूदा फ़िक्री चैलेंजेज़ का जायज़ा लिया गया।
मीटिंग से ख़िताब करते हुए मुफ़्ती इक़बाल अहमद क़ासमी ने कहा कि अल्लाह तआला ने हर दौर में शहर कानपुर के लिए अपने मक़सूस बंदों का इंतिख़ाब फ़रमाया है, उन्हीं में एक अहम नाम मौलाना मोहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी रह. का है। मौलाना ने अपनी पूरी ज़िंदगी दीन के कामों और तहरीक़ात के लिए वक़्फ़ कर रखी थी और अल्लाह ने मौलाना को सभी अकाबिर का मंज़ूर-ए-नज़र बनाया था। मुफ़्ती साहब ने मौलाना उसामा रह. के इंतिक़ाल के बाद अपने एक ख़्वाब का ज़िक्र करते हुए बताया कि मौलाना उसामा साहब रह. ने मुझसे कहा कि “तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत के काम में कमज़ोरी नहीं आनी चाहिए, इस काम की बहुत ज़रूरत है।”
मुफ़्ती इक़बाल ने कहा कि यह इंदअल्लाह मौलाना उसामा रह. की मक़बूलियत की निशानी मालूम होती है। उन्होंने मौलाना के जानशीन और फ़र्ज़ंद मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी और उनके साथ मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत की पूरी टीम की हौसला-अफ़ज़ाई की और उसी तरह मेहनत और लगन से काम करने की तरगीब दी।
मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत कानपुर के सदर मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी ने अपने ख़िताब में कहा कि फ़िदा-ए-मिल्लत मौलाना सैयद असअद मदनी रह. की हिदायत पर सन 90 की दहाई में उल-मदारिस दारुल उलूम देवबंद की सरपरस्ती में वालिद साहब ने मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत कानपुर की बुनियाद रखी। इसका मक़सद सिर्फ़ कानपुर ही नहीं बल्कि अत़राफ़ के अजला (ज़िलों) में भी बातिल नज़रियात का ताअक़ुब व सिद्दे बाब और अवाम व ख़वास के अंदर अक़ायद की अहमियत को उजागर करना था। अपने क़याम से लेकर आज तक मजलिस अपने मक़सद पर क़ायम है।
मौलाना ने कहा कि गुज़िश्ता 30 सालों में मजलिस की मेहनत से कानपुर में क़ादियानियत और प्रोवेज़ियत की कमर टूटी, 2017 में शकीलियत के ख़िलाफ़ कानपुर से तहरीक का आग़ाज़ हुआ, आज अल्हम्दुलिल्लाह कानपुर में शकीलियत के नुमाइंदगान कमज़ोर पड़ चुके हैं, अब इस वक़्त राफ़िज़ियत व नीम राफ़िज़ियत पर काम करने की ज़रूरत है। इसके अलावा इटावा, उन्नाव, कन्नौज, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, मैनपुरी, हरदोई, फ़तेहपुर वग़ैरह में काम जारी है।
मौलाना अब्दुल्लाह क़ासमी ने बताया कि वालिद साहब रह. की रहलत के बाद 2018 में जामिआ मस्जिद अशरफ़ाबाद में माह अक्टूबर में, जनवरी 2021 मसवानपुर, अक्टूबर 2021 रोशन नगर, नवंबर 2022 और 2024 परेड ग्राउंड, नवंबर 2023 अशरफ़ाबाद जाजमऊ में तर्बियती कैम्प और उमूमी कॉन्फ़्रेंस का इनइक़ाद हुआ जिसमें मुल्क के सफ़-ए-अव्वल के अकाबिर तशरीफ़ लाए।
इस साल माह नवंबर की पहली और दूसरी तारीख़ को ख़ुसूसी तर्बियती कैम्प मुनअक़िद किया जा रहा है जिसकी अकाबिर से मंज़ूरी मिल चुकी है। उन्होंने आइम्मा हज़रात से मजलिस के हाथों को मज़बूत करने की अपील की।
मजलिस के नायब नाज़िम मौलाना अमीर हम्ज़ा क़ासमी ने कारगुज़ारी पेश करते हुए बताया कि शहर कानपुर में अरसा-ए-दराज़ से फ़िर्क़ा-ए-बातिला के ख़िलाफ़ मोहाज़-आराई जारी है। इस मक़सद के लिए वक़्तन फ़वक़्तन बड़े और छोटे प्रोग्राम होते रहे हैं। इन कोशिशों का असर यह है कि आज के हालात में शकीली, क़ादियानी और प्रोवेज़ी जमाअतों की सरगर्मियाँ बा़ज़ाहिर नज़र नहीं आ रहीं। लेकिन यह हमारे लिए इत्मिनान की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये बातिल फ़िर्क़े हमेशा ख़ुफ़िया अन्दाज़ में मेहनत करते हैं। लिहाज़ा हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी अवाम तक ज़्यादा से ज़्यादा सही और दुरुस्त अक़ायद पहुँचाएँ।
मौलाना ने कहा कि इस वक़्त सबसे ज़्यादा जो फ़ितना सरगर्म है वह हज़रात-ए-सहाबा किराम रज़ि. अलैहिम से बदगुमानी का फ़ितना है। हज़रत अली रज़ि. की मोहब्बत के पर्दे में हज़रत मुआविया रज़ि. पर तन्क़ीद को लोग एक दिलपसंद मशग़ला बना चुके हैं। ऐसी सूरत में हमारी अव्वलीन ज़िम्मेदारी है कि हम दिफ़ा-ए-सहाबा किराम का फ़रीज़ा मज़बूत और मुनज़्ज़म अंदाज़ में अदा करें।
इसके अलावा मौलाना ख़लील अहमद मज़ाहिरी और मौलाना मोहम्मद अक़्रम जामई ने ताईदी कलिमात से नवाज़ा।
मीटिंग का आग़ाज़ क़ारी मोहम्मद मुजीबुल्लाह इर्फ़ानी की तिलावत-ए-क़लाम पाक से हुआ, मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी ने नात व मुनक़्बत का नज़राना पेश किया।
मीटिंग में क़ाज़ी-ए-शहर कानपुर हाफ़िज़ ममूर अहमद जामई, मजलिस के नाज़िम मुफ़्ती इज़हार मुक़र्रम क़ासमी, मौलाना मोहम्मद अनीस ख़ान क़ासमी, मौलाना मोहम्मद फ़रीदुद्दीन क़ासमी, मौलाना अनीसुर्रहमान क़ासमी, मौलाना अंसार अहमद जामई, मुफ़्ती मोहम्मद मुअज़ क़ासमी, मुफ़्ती आक़िब शाहिद क़ासमी, क़ारी अब्दुल मुईद चौधरी, मौलाना मोहम्मद अ़क़ील जामई, मौलाना मोहम्मद आक़िब जामई, मौलाना मोहम्मद कलीम जामई, मौलाना मोहम्मद हुज़ैफ़ा क़ासमी, मौलाना मोहम्मद सुहैल क़ासमी, मौलाना मोहम्मद ताहिर क़ासमी, मौलाना शरफ़ आलम स़ाक़िबी, मौलाना शादान नफ़ीस क़ासमी, मौलाना शुऐब मुबीन मज़ाहिरी, मौलाना मइराज जामई, हाफ़िज़ मोहम्मद अल्मास, हाफ़िज़ मोहम्मद शारिक़, हाफ़िज़ मोहम्मद रिज़वान मक्की, हाफ़िज़ मोहम्मद इरफ़ान, क़ारी बदरुज़्ज़मां कुरैशी, मौलाना मदस्सर, हाफ़िज़ उबेदुल्लाह, मुफ़्ती इकराम नदवी, मोहम्मद उसामा, मौलाना मोहम्मद ज़ैद हनफ़ी, नबील अहमद, मोहम्मद ताहिर, अब्दुर्रहमान, मौलाना मुअज़्ज़म जामई और मौलाना सऊद जामई वग़ैरह मौजूद रहे जबकि बारिश की वजह से कई अराकीन शिरकत नहीं कर सके।