कानपुर।मोहम्मद उस्मान कुरैशी। हज़रत शेख़ मख़दूम शाह आला रहमतुल्लाह अलैह फ़ातेह जाजमऊ शरीफ़, 21 रमज़ानुल मुबारक 528 हिजरी, जुलाई 1134 ईस्वी में ज़ंजान (ईरान) में पैदा हुए।
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प्रारम्भिक शिक्षा माता जी की हो और फिर पिता व चाचा के साए में पले-बढ़े। इसके बाद और अधिक तालीम के लिए बग़दाद शरीफ़ पहुँचे और वहाँ दो साल तक रहे। इस दौरान उन्होंने कुरान, हदीस, फ़िक़्ह, तफ़्सीर, अदब, इतिहास तथा शरियत व तरीक़त की तालीम हासिल की। बग़दाद ही में हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाक़ात हुई और कई दिन उनकी सोहबत( संगत) में रहे। यह वाक़या ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के हिंदुस्तान आने से पहले का है।
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने आपको ख़िलाफ़त व इजाज़त से नवाजा हज़रत मख़दूम शाह आला को सिलसिला-ए-सोहरवर्दया और कादरिया की ख़िलाफ़त भी हासिल थी इल्म की तक़मील के बाद आप बग़दाद से वापस अपने वतन ज़ंजान (ईरान) लौटे और वहाँ से इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए जाजमऊ का रुख़ किया।
इन ख़यालात का इज़हार मदरसा जामिया अशरफ़ुल मदारीस गदियाना में आयोजित जश्न-ए-मख़दूम शाह आला में ग़ाज़ी-ए-इस्लाम हज़रत मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफ़ी (क़ौमी सदर, ऑल इंडिया ग़रीब नवाज़ काउंसिल व इमाम ईदगाह गदियाना) ने किया
उन्होंने बताया कि हज़रत मख़दूम शाह आला की दिल्ली आमद पर सुलतान ऐबक ने आपका गर्मजोशी से स्वागत किया, कदमबोसी की और “मरहबा” कहा फिर आप जाजमऊ की ओर रवाना हुए जहाँ एक आदिल, मुनसिफ़ और अल्लाह का वली का इंतज़ार था
जाजमऊ शरीफ़ पहुँचते ही आपने ज़ालिमाना हुकूमत का अंत किया और हक़ व सच्चाई तथा अद्ल व इंसाफ़ का परचम लहराया इससे भेदभाव और नफ़रतें मिट गईं और इंसानियत व मानवता का बोलबाला हुआ हज़रत मख़दूम शाह आला ने अपनी ज़ाहिरी ज़िंदगी के 60 साल जाजमऊ शरीफ़ में गुज़ारे और लोगों को आपसी मोहब्बत और भाईचारे का सबक़ दिया।
27 सफ़रुल-मुज़फ़्फ़र 657 हिजरी, 1259 ईस्वी में आपका विसाल हो गया मौलाना अशरफ़ी साहब ने कहा कि हज़रत मख़दूम शाह आला ने 125 साल की उम्र पाई आपका रोज़ा जाजमऊ शरीफ़ में है जिसकी तामीर 14 रबीउल अव्वल 761 हिजरी में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के दौर में इंजीनियर अबुल मुबारक मोहम्मद की निगरानी में हुई आज भी यह जगह अवाम के लिए खास है
जलसे की सदारत आली जनाब अदनान राफ़े साहब फ़ारूक़ी (सजादानशीन आस्ताना मख़दूम शाह आला जाजमऊ शरीफ़) ने की।
साहिब-ए-सजादा और दरगाह कमेटी के सदर व सरपरस्त जनाब इर्शाद आलम का हार-फूल से शानदार इस्तक़बाल हुआ इससे पहले महफ़िल की शुरुआत क़ारी सैयद क़ासिम बरकाती ने तिलावत-ए-कुरान से की नात व मनक़़बत का नज़राना यूसुफ़ रज़ा कानपुरी, मोहम्मद हसन शिबली अशरफ़ी और क़ारी मोहम्मद अहमद अशरफ़ी ने पेश किया।
निज़ामत के फ़रायज़ हाफ़िज़ मोहम्मद अरशद अली अशरफ़ी ने बख़ूबी अंजाम दिए सलात व सलाम के बाद मुल्क की तरक़्क़ी, अम्न-ओ-शांति और खुशहाली की दुआ की गई और तबर्रुक़ तक़सीम हुआ इस मौके पर ख़ास तौर पर हाफ़िज़ मिन्हाजुद्दीन क़ादरी, मौलाना फ़तेह मोहम्मद क़ादरी, मौलाना सफ़ियान मिस्बाही, मौलाना महमूद अख्तर अलीमी, मौलाना मोहम्मद आज़ाद अशरफ़ी, मौलाना गुल मोहम्मद जामई, मौलाना मसऊद मिस्बाही, हाफ़िज़ मसऊद अशरफ़ी, हाफ़िज़ मुश्ताक़ अशरफ़ी, हाजी अरबी हसन, हाजी मोहम्मद असलम, हाजी हैदर अली अशरफ़ी, हाजी रसूल बख़्श, सुब्बा अली अशरफ़ी, मोहम्मद हनीफ़, मोहम्मद शरीफ़ आदि मौजूद रहे