बाराबंकी (अबू शहमा अंसारी) सआदतगंज की बेहद सक्रिय अदबी तंज़ीम “बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल” के ज़ेरे- एहतमाम एक शानदार और बहुत ही कामयाब महफ़ि ले- मसालिमा का आयोजन किया गया, इस नायाब और यादगार महफ़िल की सदारत मशहूर उस्ताद शायर और ज़ायरे- कर्बला अलहाज नसीर अंसारी ने फ़रमाई, वहीं महमाने- ख़ुसूसी के तौर पर अदील मंसूरी और महमाने- ज़ी वक़ार की हैसियत से आसी चौखण्डवी ने शिरकत की,
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इस असरदार महफ़िल की निज़ामत की ज़िम्मेदारी मशहूर शायर आफ़ताब जामी ने अपने अनोखे, जुदा और दिलकश अंदाज़ में अंजाम फ़रमाई, महफ़िल की शुरुआत मुश्ताक़ बज़्मी ने नाते- रसूल सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम से की, जिसने महफ़िल को रुहानी फ़िज़ा से भर दिया,
इस महफ़िले- मसालिमा में पढ़े गए कुछ बेहतरीन और दिल को छू जाने वाले अशआर पेश हैं!
( नसीर अंसारी )
तुझ पे नाज़ाँ हैं बहारें ख़ुल्द की
कर्बला तेरी बहारों को सलाम”
( ज़की तारिक बाराबंकवी )
जंग के नाम से कर्बल में हुआ ज़ुल्म फ़क़त
जंग होती तो फिर असग़र नहीं मारे जाते
( अदील मंसूरी )
शहीद हो गया कुनबा हुसैन का पूरा
हुसैनियत का मगर इससे ख़ात्मा न हुआ
( आसी चौखण्डवी )
मैंने रोका जो था आप का रास्ता
सर है हाज़िर मिरा ऐ मिरे बादशाह
सुब्ह का भूला मैं शाम को आ गया
अब ख़ता बख़्श दो मेरे आक़ा हुसैन
( मुश्ताक़ बज़्मी )
अब तो है क़यामत तक उम्मते- मुहम्मद का
तू ही पेशवा शब्बीर, तू ही रहनुमा शब्बीर
( अस्लम सैदनपुरी )
नाना की पुश्ते- पाक पे जो खेलता रहा
ऐ कर्बला है गोद में तेरी वही हुसैन
( राशिद रफ़ीक़ )
अगर तुम ग़ौर से कर्बो- बला की दास्ताँ सुनते
तुम्हारे होश उड़ जाते कलेजा मुँह को आ जाता
( आफ़ताब जामी )
तुम्हें बताएँ कि महशर के रोज़ क्या होगा
जिधर हुसैन रहेंगे उधर ख़ुदा होगा
( ज़हीर सैदनपुरी )
दीने- नबी की शान बढ़ाने के वास्ते
ख़ंजर के नीचे अपना गला कर गए हुसैन
( उबैद अज़मी )
आप के इक आख़िरी सज्दे ने वाज़ेह कर दिया
सारी दुनिया की नमाज़ों पर है एहसाने- हुसैन
( सहर अय्यूबी )
अपने सीने से लगा लूँ ओर अदब से चूम लूँ
आप के दर की जो थोड़ी ख़ाक मिल जाए हुसैन
( नईम सिकंदरपुरी )
सिवा हुसैन के कोई न ज़िक्र होगा अब
ज़बाँ है वक़्फ़ मिरी ज़िक्रे- कर्बला के लिए
( आसिम अक़दस )
नामे- यज़ीद मिट गया दुनिया से दोस्तो
सब के दिलों में आज भी ज़िंदा हुसैन है
( अबूज़र अंसारी )
ख़ुदा की शान, उसे मौत भी न मार सकी
जहाँ में आज भी मेरा हुसैन ज़िंदा है
इन शायरों के अलावा मिस्बाह रहमानी, इज़हार हयात, अर्शद उमैर सफ़दरगंजवी और तालिब नूर ने भी अपने अपने कलाम को बारगाहे- हुसैन में नज़रान- ए- अक़ीदत के तौर पर पेश किया,
महफ़िल में मौजूद श्रोताओं में मास्टर मोहम्मद वसीम, मास्टर मोहम्मद क़सीम, मास्टर मोहम्मद हलीम, और मास्टर मोहम्मद राशिद के नाम ख़ास तौर पर क़ाबिले-ज़िक्र हैं,
महफ़िल के इख़्तिताम पर “बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल” के सद्र ज़की तारिक़ बाराबंकवी ने महफ़िले- मसालिमा में शरीक हो कर इसे कामयाब बनाने वाले तमाम शायरों और श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया और इस मिसाली आयोजन को यादगार बना दिया।