गोरखपुर। नहीं रहे एडवोकेट शरीफ अहमद पूर्वांचल के शिक्षा क्रांति के जनक, इस्लामिया कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के संस्थापक एडवोकेट हाजी शरीफ अहमद का आज सुबह एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। 92 वर्ष की आयु में उन्होंने आखिरी सांस ली। शरीफ अहमद विगत कुछ महीनो से बढ़ती उम्र को लेकर कई बीमारियों से ग्रसित थे।
मरहूम शरीफ अहमद अपने पीछे पंच पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए।
अब इस दुनिया में नहीं रहे एडवोकेट शरीफ अहमद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से 1958 के आसपास स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वह गोरखपुर चले आए और गोरखपुर में वकालत की डिग्री हासिल की और गोरखपुर में वकालत शुरू की। एक अधिवक्ता के रूप में ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षा जगत में कदम रखा।
पूर्वांचल के शिक्षा जगत में शिक्षा में नई क्रांति लाने वाले शरीफ अहमद ने गोरखपुर में 1990-91 में इस्लामिया कॉलेज ऑफ कॉमर्स की बुनियाद डाली।
हाजी शरीफ अहमद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शिक्षा के दौरान ही यह मन बना लिया था कि वह सर सैयद अहमद ख़ान के उस मिशन को आगे बढ़ाएंगे जो सर सैयद का ख़्वाब था की क़ौम का हर बच्चा तालीमे याफ़्ता हो। वह चाहते थे कि मुस्लिम कौ़म के बच्चे शिक्षित होकर दूसरी क़ौमो से बात करने का हौसला रखें और यह तभी मुमकिन था जब वह पूरी तरह शिक्षित और इल्म से पूरी तरह वाक़िफ़ हों।
हाजी शरीफ अहमद ने वकालत से शुरुआत की लेकिन उनके जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा तालीम को आगे बढ़ाने में गुज़रा। उन्होंने इस्लामिया कॉलेज आफ कमर्स की ऐसी बुनियाद डाली कि यहां से निकलने वाले छात्र आज दुनिया के कोने-कोने में अपने कॉलेज का नाम रोशन कर रहे हैं उन्होंने शिक्षा की ऐसी उत्तम व्यवस्था की, कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के बाद पूरे मंडल में इस्लामिया कॉलेज ऑफ कॉमर्स का नाम लिया जाता है। इस्लामिया कॉलेज आफ कामर्स ने बहुत सारे गोल्ड लिस्ट छात्र दिए हैं। यह सब शरीफ अहमद एडवोकेट के कठिन परिश्रम का नतीजा है।
आज उनके ना रहने पर पूर्वांचल के शिक्षा जगत में जो जगह खाली हो गई है वह आसानी से भरने वाली नहीं है क्योंकि हाजी शरीफ अहमद जैसी शख्सियतें रोज़-रोज़ नहीं पैदा हुआ करतीं।
शरीफ साहब का ताल्लुक़ अलीगढ़ से था और वह गोरखपुर के सबसे सीनियर अलीगेरियन थे। उनका इस तरह अचानक हम सब से जुदा हो जाना हम सबके लिए बहुत दख की बात है। शरीफ साहब ने शिक्षा के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व कार्य किया है उसकी मिसाल कब मिलती है। वह सादा जीवन और उच्च विचार वाले व्यक्ति थे।
डॉ अज़ीज़ अहमद
मैं अलीगढ़ से जब शिक्षा ग्रहण करके गोरखपुर आया तो मेरी मुलाक़ात शरीफ अहमद साहब से हुई उन्होंने मुझे बताया कि वह इस्लामिया कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स की बुनियाद रखना चाहते हैं। संगे बुनियाद रखी गई और फिर भवन निर्माण का काम मेरे सुपुर्द कर दिया गया। शरीफ साहब का यह ख्वाब था कि मुस्लिम बच्चों को भी अच्छे से अच्छी तालीम दी जाए। उनका सबसे बड़ा कारनामा यह है कि उन्होंने इस कॉलेज को बनाने के लिए कभी किसी से कोई चंदा नहीं लिया। वह अपने फ़न के माहिर थे। कॉलेज की ताबीर के लिए कैसे पैसों का बंदोबस्त कर लेते थे, यह अल्लाह ही बेहतर जानता है।
….. इंजीनियर शम्स अनवर
हाजी शरीफ अहमद से हम लोगों का बहुत पुराना नाता है। मेरे वाली साहब से भी उनके बहुत अच्छे ताल्लुक़ात थे। शरीफ साहब ने तालीम के लिए जो खिदमत अंजाम दी है वह हमेशा याद की जाएगी और उनकी यही कोशिश है उनको हमेशा जिंदा रखेगी। आज वह हमारे दरमियांन नहीं है लेकिन उन्होंने इल्म की जो शम्मा रोशन की है वह हमेशा जलती रहेगी।
…………… महबूब सईद “हारिस”
शरीफ अहमद एडवोकेट अपने नाम की तरह ही निहायत शरीफ और मुख़लिस इंसान थे। हम लोगों से हमेशा शफ़क़त और मोहब्बत से बात करते थे। उनके सरपरस्ती हमेशा हम लोगों को हासिल रही। एक ऐसी शख्सियत का यूं चला जाना इस शहर के साथ-साथ इल्म के मैदान में एक बहुत बड़ा नुकसान है।
………… मसरूर जमाल