कानपुर। मोहम्मद उस्मान कुरैशी। आज रीजेंसी सेंटर फॉर डायबिटीज़, एंडोक्रिनोलॉजी एंड रिसर्च में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में डा अनुराग बाजपेई और डॉ रश्मि कपूर ने बताया कि रीजेंसी सेंटर फॉर डायबिटीज़, एंडोक्रिनोलॉजी एंड रिसर्च के नवीनतम अध्ययन, जिसे जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज़ में प्रकाशित किया गया है, ने मोटापे से ग्रसित भारतीय बच्चों और किशोरों में लिवर डैमेज की अधिकता को उजागर किया है , बच्चों में लिवर डैमेज की इस नई खोज से साधारण जांच द्वारा रोग की शुरुआती पहचान संभव है जिनमें से अधिकतर में कोई लक्षण नहीं पाए गए।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!उन्होंने बताया कि 62 मोटे बच्चों पर किए गए इस अध्ययन में प्रमुख निष्कर्ष सामने आए हैं कि लगभग 60% बच्चों में लिवर में वसा जमा (स्टिएटोसिस) पाई गई , प्रत्येक 10 में से 1 बच्चे में लिवर फाइब्रोसिस के संकेत मिले, जो आगे चलकर सिरोसिस का रूप ले सकता है, एक साधारण रक्त जांच (ALT > 69 IU/L) फाइब्रोसिस की पहचान में 83% तक सटीक पाई गई , BMI SDS 1.7 से अधिक होने पर जोखिम अधिक पाया गया , रीजेंसी सेंटर फॉर डायबिटीज़, एंडोक्रिनोलॉजी एंड रिसर्च के वरिष्ठ पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. अनुराग बाजपेई ने कहा, “बच्चों में लिवर रोग अक्सर गंभीर होने तक पहचाना नहीं जाता”
रीजेंसी हेल्थकेयर के पीडियाट्रिक विभाग की निदेशक डॉ. रश्मि कपूर ने जोड़ा, “हमारे निष्कर्ष मोटे बच्चों में ALT और BMI जैसी सरल और किफायती जांच के माध्यम से नियमित लिवर स्क्रीनिंग की आवश्यकता को उजागर करते हैं। इस शोध में लिवर की कठोरता और वसा को मापने के लिए ट्रांसिएंट एलास्टोग्राफी (FibroScan) का उपयोग किया गया। इससे यह सिद्ध हुआ कि ALT रक्त स्तर और BMI शुरुआती लिवर डैमेज के व्यावहारिक और गैर-इनवेसिव संकेतक हो सकते हैं।
भारत में इस प्रकार के प्रारंभिक शोधों में से एक यह अध्ययन, राष्ट्रीय स्तर पर मोटे बच्चों की देखभाल में लिवर स्क्रीनिंग को शामिल करने की नीति बनाने का आह्वान करता है और अभिभावकों से बच्चों की जीवनशैली को स्वस्थ बनाने के लिए समय पर कदम उठाने की अपील करता है।