कानपुर: (मोहम्मद उस्मान कुरैशी) बाल रोग अकादमी, कानपुर ने आईएपी वर्ल्ड मेडिकोलीगल प्रोटेक्शन डे के उपलक्ष्य में जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर में एक कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यक्रम का संचालन अकादमी की अध्यक्ष डॉ. रोली श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. रेनू गुप्ता ने कार्यशाला का उद्घाटन किया।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कार्यशाला: किसने क्या कहा
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मेडिकोलीगल चैप्टर के चेयरपर्सन डॉ. जे. के. गुप्ता ने POCSO अधिनियम एवं अन्य विधिक पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके साथ ही बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण आर्य, प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र गौतम एवं डॉ. नेहा अग्रवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यशाला में निम्न बिंदुओं पर चर्चा हुई:
भारतीय बाल रोग अकादमी द्वारा मेडिको लीगल पर एक कार्यक्रम का आयोजन बाल रोग सभागार हैलेट में हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अमितेश यादव व डॉक्टर रोली मोहन श्रीवास्तव ने किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉक्टर जे के गुप्ता ने बताया की
चिकित्सा व्यवसाय में कानूनी अड़चनें एवं डॉक्टरों और अस्पतालों पर मुकदमें लगातार बढ़ते जा रहे हैं। डॉक्टरों पर उपभोक्ता फोरम के अलावा क्रिमिनल मुकदमें दर्ज हो रहे हैं जिससे चिकित्साजगत आहत है।
इलाज के दौरान मरीज की स्तिथि बिगड़ने या मृत्यु होने पर डॉक्टरों पर क्रिमिनल केस दर्ज होने और गिरफ्तारी को रोकने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने जैकब मैथ्यूज बनाम पंजाब राज्य, मार्टिन डिसूजा बनाम मो अशफाक, लतिका कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल के केस में स्पष्ट गाइडलाइन जारी की हैं जो इस प्रकार हैं
- केवल घोर चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में ही डॉक्टरों पर क्रिमिनल मुकदमा दर्ज हो।
- क्रिमिनल चिकित्सकीय लापरवाही के मुकदमें पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच के बाद ही दर्ज हों।
- क्रिमिनल चिकित्सकीय लापरवाह के मामलों में सीएमओ द्वारा बोर्ड की जांच अनिवार्य हो एवं दोषी पाए जाने पर ही क्रिमिनल मुकदमा चले।
- डॉक्टरों की अनावश्यक गिरफ्तारी न हो।
- विवेचक विवेचना से पूर्व अन्य उसी विधा के चिकित्सक की लिखित राय अनिवार्य रूप से ले।
- इलाज के दौरान मृत्यु होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज करने की जगह लापरवाही से मृत्यु की धारा में ही मुकदमा दर्ज हो।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्टिन डिसूजा केस में डॉक्टरों की अनावश्यक गिरफ्तारी पर पुलिस के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की चेतावनी जारी की है।
सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त गाइडलाइन का अनुपालन न होने की वजह से पिछले वर्ष राजस्थान की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अर्चना शर्मा गैर इरादतन हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज होने पर आत्महत्या कर ली थी। इस तरह की दुखद घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
भारतीय संविधान के आर्टिकल१४१ और १४३ के अनुपालन में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सभी निचली अदालतों, सभी सरकारी विभागों और पुलिस प्रशासन पर बाध्यकारी होता है, अनुपालन न किया जाना सुप्रीम कोर्ट के कंटेम्प्ट की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का अनुपालन सुनिश्चित करवाने हेतु पुलिस के उच्च अधिकारियों द्वारा विभागीय सर्कुलर समय समय पर निकाला जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल के केस में मेडिकल नेगलिजेंस तय करने हेतु 11 सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं जिसके अनुसार अगर कोई चिकित्सकीय राय में भिन्नता, सर्वमान्य प्रतिपादित मेडिकल इलाज के बावजूद सुधार न आना, मृत्यु होना या डायग्नोसिस तक न पहुंच पाना, चिकित्सकीय एक्सीडेंट आदि मेडिकल नेगलिजेंस की श्रेणी में नहीं आता है। अतः मरीज के परिजनों को मरीज के इलाज में आशातीत सफलता न मिलने पर चिकित्सकीय लापरवाही ठहराया जाना सही नहीं है।
देश के लगभग सभी प्रदेशों में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू है जिसमें क्लिनिक, अस्पताल आदि में हिंसा पर ३ साल की कैद और पचास हजार जुर्माने का प्राविधान है। इसके बाद भी पुलिस क्लिनिक और अस्पतालों में तोड़फोड़ पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट में मुकदमा दर्ज नहीं करती है।
केरल हाईकोर्ट ने डॉक्टरों और अस्पतालों पर हिंसा रोकने के लिए डीजीपी पर जवाबदेही तय की थी। इसकी रोकथाम हेतु सरकार और पुलिस प्रशासन को विशेष ध्यान देना चाहिए और डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही उनके साथ हिंसा की स्तिथि में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के अंतर्गत अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत करवा कर कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करना चाहिए।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में आयोजित कार्यशाला में उन्होंने कहा कि मीडिया से भी अपेक्षा है कि मरीज एवं चिकित्सकों के मध्य बढ़ती अविश्वास की खाई को पाटने में एक सार्थक भूमिका अदा करे। एक पक्षीय खबर छापने से बचे। झोलाछाप के द्वारा किए गए कृत्यों को डॉक्टरों से न जोड़े जिससे चिकित्सकीय पेशे के प्रति अविश्वास न बढ़े।
चिकित्सकों के द्वारा किए जा रहे अच्छे इलाज और सामाजिक कार्यों को भी खबरों में स्थान दे। कार्यक्रम में डॉ शैलेन्द्र गौतम, डॉक्टर अरुण कुमार आर्या, डॉ प्रतिभा सिंह, डॉ नेहा अग्रवाल , गायनी विभाग की डॉक्टर रेनू गुप्ता व 50 रेजिडेंट छात्र मौजूद रहे।