सांप्रदायिक राजनीति भारतीय यकता के लिए खतरनाक हो सकता है
सांप्रदायिक राजनीति और धार्मिक उन्माद समर्थन जुटाने का हथियार है, जिस से सामाजिक विभाजन और संघर्ष को बढ़ावा मिलता है। ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में यह भारत के संविधान की धर्मनिरपेक्षता को भी चुनौती देता है। सांप्रदायिक राजनीति ने विश्व भर में भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को काफी नुकसान पहुँचाया है। समय समय पर भारत में उत्पन्न सांप्रदायिकता ने भारतीय अल्पसंख्यकों की चनातायें भी बढ़ाई हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ:
- औपनिवेशिक विरासत (Colonial Legacy): भारत में सबसे पहले सांप्रदायिकता का आरंभ ब्रिटिश राज में हुआ। अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” की रणनीति ने हिंदू-मुस्लिम तनाव की बुनियाद डाली। 1909 में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग अलग निर्वाचन छेत्रों का चयन और 1932 में सांप्रदायिक पुरस्कारों की शुरूआत ने धार्मिक विभाजन को राजनितिक शकल दे दिया।
- 1947 का विभाजन: अंग्रेजों के “फूट डालो और राज करो” के बाद सांप्रदायिकता अगर दूसरी कोई सबसे बड़ी वजह हो सकती है तो वह 1947 भारत पाक विभाजन है जिसके गहरे घाव आज भी सीमाओं के दोनों तरफ सामान्य दिखाई देते हैं।खास कर भारत में राह रहे मुस्लिमों को आज भी विभाजन का दोषी माना जाता है।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता: यह बात सच है कि भारत ने संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, लेकिन आर्थिक असमानताओं और धार्मिक पहचान के नाम पर सांप्रदायिक राजनीति जारी रही।
प्रमुख विशेषताऐं:
- भावनात्मक मुद्दे: राजनीतिक दल आर्थिक, शैक्षिक विकास कि जगह अक्सर धार्मिक मुद्दों जैसे राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर बयानबाजी कर के आम जतना के धार्मिक भावनाओं से खेलते हैं।
- सांप्रदायिक हिंसा: भारत में सांप्रदायिक राजनीति के मुख्य कारणों में सांप्रदायिक हिंसा का बड़ा रोल रहा है। 1984 के सिख दंगे, 6 दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद की शहादत, 2002 के गुजरात दंगे, 2013 में मुज़फ्फरनगर हिंसा और इस के जैसी लगभग 50 हज़ार से अधिक घटनाएं इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि सांप्रदायिक राजनीति ने भारत में कैसे पैर पसारे हैं। भारत में जो नेता जितना बड़ा सांप्रदायिक विचाधार से आता है उसको उतने ही राजनितिक सुख की प्राप्ति होती है।
- मीडिया और सोशल मीडिया: भारत का परम्परागत मीडिया एवं सोशल मीडिया सांप्रदायिक राजनीति को प्रोमोट करने में सबसे आगे रहा है। विशेष कर एक खास विचारधारा वाली पार्टी के लिए चुनावी माहोल बनाने में सूचना माध्यमों का बड़ा रोल रहा है। COVID-19 के दौरान मुस्लिम विरोधी अफवाहें इस का उदाहरण बन सकती हैं।
ज़िम्मेदार पार्टियाँ:
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा): सांप्रदायिक राजनीति के लिए बीजेपी और इस से जुडी हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा हिंदुत्व समर्थक पार्कीटियाँ, तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध संगठन सबसे ज्यादा गुनाहगार हैं।
- इंडियन नेशनल कांग्रेस: इस पार्टी की सबसे बड़ी गलती यह है कि यह खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती है, लेकिन “हिदुत्व” की विचारधारा का न तो खुलकर सामना किया, दुसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि इंडियन नेशनल कांग्रेस आज तक यह तय नहीं कर पाई कि उसे कम्युनल रहना है अथवा सेक्युलर।
- क्षेत्रीय पार्टियाँ: इस के लिए छेत्रिय पार्टियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। शिव सेना और AIMIM भी इस के लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं, किन्तु AIMIM की एक खास बात यह है कि वह बहुसंख्यक समाज के बहिष्कार या उनके सामान्य अधिकारों के हनन की वकालत नहीं करती है।
सांप्रदायिक राजनीति के प्रभाव:
- सामाजिक ध्रुवीकरण: सांप्रदायिक राजनीति के दुष्प्रभाव स्वरुप हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदाय अलग-थलग हो गए हैं, जिससे आपसी विश्वास, सद्भाव और भाईचारा कम हो रहा है। बहुसंख्यक समुदाय छेत्रों में मुस्लिमों के रहने उनके खाने पीने पर अंकुश लगाना, अंतरधार्मिक विवाह लवजिहाद बतानाब भारत में गहराते विभाजन और सांप्रदायिक राजनीति को दर्शाते हैं।
- आर्थिक व्यवधान: सांप्रदायिक राजनीति ने दंगों के साथ साथ आर्थिक व्यवधान भी पैदा किये हैं। लम्बे समय तक तनाव के कारण निवेश में बाधा आम बात है। आर्टिकल 370 के हटाये जाने के बाद के कश्मीर की अशांति और आर्थिक मंदी को इसका उदहारण मान सकते हैं।
- लोकतांत्रिक क्षरण: चुनावी नियमावली की अवहेलना, अभद्र भाषा और संविधान विरोधी कानून जैसे, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, 3 तलाक, वक्फ संशोधन अधिनियम में धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए बड़ा खतरा हैं।
कानूनी और संस्थागत ढांचा:
- संवैधानिक सुरक्षा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जबकि इस के विपरीत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) अभियानों में धार्मिक अपील पर रोक लगाता है। इस के अतरिक्त अनुच्छेद 341 में धार्मिक भेदभाव दर्शाता है कि भारत में सांप्रदायिक राजनीति की जड़ें कितनी गहरी हैं।
- राष्ट्रीय संस्थाएं: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) जैसी संस्थाएं शिकायतों का समाधान करती हैं, लेकिन उनके पास प्रवर्तन शक्ति का अभाव है, जिसके कारण न्याय अन्याय में परिवर्तित हो जाता। अधिकाश ऐसे मामले जिनके एक पक्ष हिन्दू एवं दूसरा मुस्लिम हो तो मुस्लिम की गलती मान ली जाती है।
- कार्यान्वयन में चुनौतियाँ: कार्यपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप और न्याय में देरी कानूनी प्रभावकारिता को कमजोर करते हैं।
सांप्रदायिक राजनीति के हालिया मुद्दे :
- नागरिकता पर बहस: भारतीय मुस्लमों की नागरिकता पर प्रश्न खड़ा किया जाना, सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शन (2019-2020) में मुसलमानों को हाशिए पर डाल दिया जाना, मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को जमानत ना दिया जाना।
- मोब्लिंचिंग: गौ-रक्षा की आड़ में मुस्कोलिमों की हत्याएं और उसमे शामिल राजनीतिक समर्थन।
- डिजिटल सांप्रदायिकता: सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल जैसे फर्जी खबरें, जिससे नफरत बढ़ती है।
समाधान:
- शिक्षा में सुधार: इस अराजकताओं से निपटने के लिए धर्मनिरपेक्ष और आलोचनात्मक सोच वाले पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाये। धार्मिक कट्टरता के दुष्प्रभाव से आम जनमानस को अवगत कराया जाये।
- सामान्य कानूनी प्रक्रिया: घृणास्पद भाषण और हिंसा के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करना, दंगा मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतों का गठन एवं न्याय प्रक्रिया में सामान्य अवसर सृजित किये जायें।
- आन्तरिक संवाद: पूरे देश में सरकार एंव सस्थागत ऐसे परियासकिये जायें जिससे सर्व धर्म के प्रति सम्मान को बढ़ावा मिले।
- आर्थिक समानता: धार्मिक लामबंदी को कम करने के लिए असमानता को कम करना पड़ेगा इस के लिए बिना धार्मिक भेदभाव के सभी वर्ग के लिए रोजगार मोहैया कराया जाये।
- मीडिया का उत्तरदायित्व: सांप्रदायिकता को जड़ से ख़तम करने का सबसे अच्छा उपाय नैतिकता पे आधारित रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करना, गलत सूचना भ्रम फ़ैलाने वाले मीड़ियासंस्थानों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई को सुनिश्चित किया जाये।
सांप्रदायिक राजनीति भारत की एकता और लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए एक बड़ी चुनौती है। संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक नेताओं, संस्थानों और नागरिकों की ओर से ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इसका एक दूसरा तरीका यह भी हो सकता है कि सांप्रदायिकता का शिकार समुदाय राजनितिक स्तर पे खुद को इतना मजबूत और शक्षम बनाये की अपने मुद्दों को खुद हल कर सके।