आरएसएस कैसे भारत को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित कर रहा है
भारत की न्यायपालिका पर आरएसएस के बढ़ते प्रभाव को लेकर कई रिपोर्ट्स और विश्लेषण सामने आए हैं। जिस में यह दावा किया जा रहा कि आरएसएस का न्यायपालिका पर क़ब्जा हो चूका है। यह लेख उन्हीं आंकड़ों और साक्षात्कारों पर आधारित है, जो दर्शाते हैं कि कैसे आरएसएस से जुड़े संगठन न्यायिक व्यवस्था को अपने हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य की ओर ले जा रहे हैं।
यह चर्चा इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार है, लेकिन आम आदमी इसे अक्सर “सर्वोच्च सत्य” मानकर बिना सवाल किए स्वीकार कर लेता है। जनता के इसी आत्मसमर्पण का दुरपयोग कर के आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (ABAP), कानूनी प्रणाली में अपनी पैठ बनाकर सामंती विचारधारा को बढ़ावा दे रहे हैं।
आरएसएस हामी ABAP का रोल: वकीलों का नेटवर्क :
ABAP, जिसकी स्थापना 1992 में आरएसएस के वकीलों द्वारा की गई थी, आज भारत के सबसे बड़े वकील संगठनों में से एक है। यह संगठन अपने स्थापना से ही निचली अदालतों से लेकर कानून के छात्रों एवं समाज के हर आदमी तक हिंदूवादी विचारधारा को फैलाने में जुटा है। देश के संविधान अथवा कानून के विरुद्ध न्यायपालिका के फैसलों को सुपोर्ट करना एवं उसकी रह हमवार करना ABAP के मुख्य उद्देश हैं।
मोदी सरकार और न्यायपालिका :
2014 के बाद से आरएसएस के कई एजेंडे, जैसे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अनुच्छेद 370 का हटना, न्यायिक निर्णयों के ज़रिए पूरे हुए हैं। जिनके बारे में पूरी दुनिया का मानना है कि यह भारतीय न्यायपालिका का न्याय देने में फेलियर है, खुद देश के कई प्रसिद्द और जाने माने वकीलों ने बाबरी मस्जिद मामले को न्याय का क़त्ल बताया, पूर्व चीफ जस्टिस मारकंडे काटजू भी इस फैसले से सहमती नहीं जता पाए।
सर्वे आर्डर:
इसी तरह हाल न्यायपालिका के द्वारा मस्जिदों के सर्वे आर्डर भी इस बात की तरफ इशारा करते हैं, कि अगर पूजा अधिनयम 1991 के प्रभावी होते हुए भी सर्वे आर्डर सुनाये जा रहे हैं तो भारत की न्यायपालिका में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में हिंदू पक्ष के पक्ष में फैसला दिया, जिसे आरएसएस की बड़ी जीत माना गया। कानून के जानकारों का मानना है कि जहाँ यह संघ के जीत है वहीँ यह भारतीय न्यायपालिका एवं लोकतंत्र की हार है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति और विवाद :
मोदी सरकार ने अपने विचारों के अनुकूल न्यायाधीशों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है। न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) का प्रमुख बनाया गया, जिनके फैसलों को पर्यावरणविदों ने “त्वरित और गैर-जिम्मेदाराना” बताया।
राजस्थान में पद्मेश मिश्रा (सुप्रीम कोर्ट जज के बेटे) की नियुक्ति पर विवाद हुआ, जिसमें नियमों को रातोंरात बदला गया।
आरएसएस समर्थक ABAP संविधान को चुनौती? :
आरएसएस समर्थक ABAP के नेता खुलकर कहते हैं: “अगर हिंदू अल्पसंख्यक होते, तो भारत कभी धर्मनिरपेक्ष नहीं बनता।” इस लिए ABAP का लक्ष्य संविधान को “हिंदू राष्ट्र” के अनुकूल बनाना है, जिसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जाता है। हाल के दिनों में मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध धार्मिक भेदभाव एवं उत्पीड़न इसी मिशन का एक हिस्सा है ।
विशेषज्ञ क्यों चिंतित हैं?:
दरअसल बीजेपी के आने से देश में हर चीज़ का राजनीतिकरण हो गया है इस सन्दर्भ में न्यायपालिका का राजनीतिकरण देश की लोकतांत्रिक भावना के लिए बड़ा खतरा बन गया है। सत्तधारी धर्म, जाति, और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को बांटकर अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है। जो देश की यकता और अखंडता को खतरे में डाल सकता है।