बाराबंकी (अबू शहमा अंसारी) आज बाराबंकी में एक ऐसी अनोखी मिसाल कायम हुई जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया। जहां आमतौर पर शादी के दो दिन पहले हल्दी और मांझा की रस्मों के दौरान नाच-गाना और डीजे का शोर सुनाई देता है, वहीं एक परिवार ने इस चलन को पूरी तरह ठुकराकर इस्लामी तरीके से खुशी मनाने का रास्ता दिखाया।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!हाजी परवेज आलम नाम के एक शख्स ने अपने बड़े बेटे की शादी से ठीक दो दिन पहले हल्दी की रस्म न करते हुए अपने छोटे बेटे मोहम्मद उबैद की हाफिज-ए-कुरान बनने की खुशी में दस्तारबंदी का एहतमाम किया। इस मौके पर शहर के उलेमा, रिश्तेदार और आसपास के लोग बड़ी तादाद में मौजूद रहे और इस कदम को सराहा।
इस मौके पर एक मिनारा मस्जिद के इमाम और ख़तीब मौलाना रफी कासमी ने कहा कि निकाह करना सुन्नत है और वलीमा भी सुन्नत है, लेकिन शादी के नाम पर नाच-गाना, डीजे बजाना, और गैर-इस्लामी रस्मों का आयोजन करना शरई तौर पर नाजायज़ है। उन्होंने कहा कि अफसोस की बात है कि हर शादी के कार्ड पर “निकाह मिन्न सुन्नती” लिखा होता है लेकिन शादी के तौर-तरीके कहीं से भी सुन्नत नज़र नहीं आते।
दूल्हे के छोटे भाई मोहम्मद उबैद के हाफिज-ए-कुरान बनने पर उनके उस्ताद क़ारी सुहैल और अन्य उलेमा की मौजूदगी में दस्तारबंदी की गई। इस मौके पर मौलाना सुहैल ने कहा कि शादी से पहले हल्दी जैसी रस्मों की बजाय अगर किसी मौलाना से सुन्नत निकाह के बारे में बयान कराया जाए तो यह कहीं ज़्यादा फायदेमंद होगा।
इस मौके पर मौलाना अख़लाक़ नदवी, मौलाना ज़ैद नदवी, मोहम्मद वेश सलमानी, पूर्व ब्लाक प्रमुख हशमत अली गुड्डू, हाजी शफीक सलमानी, अब्दुल्लाह, शानू, शकील सलमानी, हाजी जमील, शुएब किदवई, सगीर अमानुल्लाह (पत्रकार) समेत कई लोगों ने शिरकत की और इस मुबारक मौके की बधाई दी।
अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा के लिए किया गया काम
हाजी परवेज आलम का यह कदम न सिर्फ एक धार्मिक एवं अनोखी मिसाल बना, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी कि हम इस्लामी तालीमात को अपनाकर अपने रस्मों को सही दिशा में मोड़ सकते हैं। उनका कहना है कि हमें हर उस काम से बचना चाहिए जो सुन्नत के खिलाफ हो। शादी खुशी का मौका है, लेकिन इसे इस्लाम के दायरे में रहकर मनाना ही सच्ची कामयाबी है।